किसी महापुरुष की जीवनी ( महात्मा गाँधी )


1 . किसी महापुरुष की जीवनी ( महात्मा गाँधी )
रूपरेखा - 1 . प्रस्तावना - बालपन तथा शिक्षा । 2 अफ्रीका में कार्य । 3 . भारतीय स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए प्रयत्न । 4 . जीवन - निर्वाण । 5 . सिद्धान्त तथा विशेषताएं । 6 . उपसंहार ।
" विविध बाधा मुदित पथ की दमन की रह शान्ता मन्जु मोहनचन्द्र ने रचकर विहित संग्राम । " - हरिऔध
1 . बालकपन तथा शिक्षा - निर्माणोन्मुख आदर्शों के अन्तिम ' दीपशिखोदय ' , मानव आत्मा के प्रतीक , दलित देश के ' दुर्दम नेता श्री मोहनदास करमचन्द गांधी का जन्म 2 अक्टूबर , 1869 ई० को काठियावाड़ जिले के पोरबन्दर नामक स्थान पर हुआ था । आपके पिता करमचन्द पहले पोरबन्दर के तथा बाद में राजकोट तथा बीकानेर के दीवान रहे । आपकी प्रारम्भिक शिक्षा राजकोट में हुई । आपका विद्यार्थी जीवन साधारण रहा । आपका विवाह 13 वर्ष की अल्प आयु में हुआ था । 1887 ई० में मैट्रिक की परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद आप कानून की शिक्षा प्राप्त करने के लिए इंग्लैण्ड चले गये और वहाँ से तीन वर्ष में बैरिस्ट्री पास करके भारत लौट आये । भारत आकर आपने मुम्बई तथा राजकोट में वकालत आरम्भ की किन्तु सत्य के पक्षपाती होने के कारण आपको इसमें सफलता प्राप्त न हो सकी ।
2 . अफ्रीका में कार्य - 1893 ई० में आप पोरबन्दर के एक धनी व्यापारी के मुकदमे की देख - रेख के लिए अफ्रीका गये । ' गोरे ' भारतीयों को ' कुली और गांधीजी को ' कुली बैरिस्टर ' कहकर पुकारते थे । गांधीजी को भी एक बार उच्च श्रेणी के डिब्बे में से निकाल दिया गया । इन सब अत्याचारों को देखकर आप अत्यधिक दुःखी हुए । आपने भारतीयों को संगठित कर ' नैटाल कांग्रेस ' की स्थापना की तथा एक समाचार - पा का प्रकाशन कर ' असहयोग आन्दोलन का श्रीगणेश कर दिया । 191450 में आप अफ्रीका में भारतीयों का मस्तक ऊँचा करके भारत लौट आये ।
3 . भारतीय स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए प्रयत्न - इसी समय संसार में प्रथम महायुद्ध की जाला धधक उठी । ब्रिटिश सरकार का विश्वास कर गांधी जी ने उसे युद्ध में सहायता दी । गांधीजी इस चोट को न सह सके और आपने देश भर में अहिंसात्मक असहयोग आन्दोलन का शंख पूक दिया । दमन का दौर चला और गांधी जी तथा असंख्य जनसेवक जेल में डाल दिये गये , इसके बाद 1920 , 1932 तथा 1942 ई० में आन्दोलन की पुनरावृत्ति हुई । अन्त में आपके भगीरथ प्रयत्नों और अनेक संपों के फलस्वरूप 15 अगस्त , 1947 ई० को भारत स्वतन हो गया ।
4 . जीवन - निर्वाण - 30 जनवरी , 1948 ई० को दिल्ली में जब आप बिड़ला मन्दिर से प्रार्थना स्थल की ओर आ रहे थे , तब उन्मादी नाथूराम गोड़से के द्वारा आपकी हत्या कर दी गयी। यद्यपि आप अपने भौतिक शरीर से हमारे बीच नहीं हैं , तथापि आपके द्वारा प्रज्वलित दिव्य ज्योति आज भी हमारा मार्ग - दर्शन कर रही है ।
5 . सिद्धान्त तथा विशेषताएं - ( क ) सत्य और अहिंसा का पुजारी - आप सत्य और अहिंसा के सच्चे पुजारी थे । आपने जीवन भर सत्य और अहिंसा के सफल प्रयोग किये और इसी के बल पर भारत को स्वतन्यता दिलवायी । ( ख ) मातृ - भक्त - गांधीजी माता के परम भक्त थे । उन्होंने अपनी माँ के उपदेशों को सदैव याद रखा । ( ग ) हरिजन - प्रेमी - गांधीजी हरिजनों से अत्यधिक सहानुभूति रखते थे । छुआछूत की भावना उनसे कोसों दूर थी । वे हरिजनों को गले लगाते थे । उनके साथ बैठकर खाते - पीते भी थे । ( घ ) दव - प्रतिज्ञ - गांधीजी अपनी प्रतिष्ठा पर दृढ रहनेवाले व्यक्ति थे । उन्होंने देश को स्वतन्य कराने एवं हरिजनों के उद्धार की प्रतिज्ञाओं को अपने जीवन में पूर्ण कर दिखाया । ( ङ ) निष्काम कर्मयोगी - गांधीजी कर्म करते थे , पर उसके पीछे उनका कोई स्वार्थ नहीं रहता था । उन्होंने देश को स्वतन्न कराया , परन्तु किसी अधिकार या सम्मान की कामना नहीं की । उनका बलिदान निःस्वार्थ था । गीता के निष्काम कर्मयोग के वे मूर्तरूप थे ।
6 . उपसंहार - आपने हिन्दू - मुस्लिम एकता , दलितोद्धार , प्राम - सुधार और खादी प्रचार के लिए स्तुत्य प्रयास किये । निःसन्देह आप धरती पर एक महामानव के रूप में अवतरित हुए ।

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